_*ये इन्सान की नई औलादें*_
-कुलदी राणा "आजाद"
जहाँ पत्थरों को
भगवान मानते थे,
पेड़ो को पुत्र,
गंगा को माँ कहते थे,
पृथ्वी जल अग्नि हवा आकाश
पूजनीय होते पंचतत्व थे।
लेकिन ये इंसानो की
नई औलादें हैं,
तरक्की के नाम पर
भूल रहे हैं अपनी मर्यादा,
देखते ही देखते
सब पानी पानी हो गया,
इसानों की मौत भी तब हुई
जब पहले पहाड़ों की मौत हुई,
घर, दुकान, पावर स्टेशन, मकान
सब पानी पानी हो गया,
ग्लेशियरों का टूटना,
पहाड़ो का दरकना,
जमीन का खिसकना
यही तो पहाडों की मौत हुई।
कभी चमोली के दामन में
कभी रुद्रप्रयाग के आंचल में
इंसानी तरक्की
और विकाश के नाम
जब जब पहाड़ों की मौत हुई
पल भर में चमन कई वीरान हुए।
जब जब समझने लगा इन्सान
कुदरत के बनाये दिन और रात
उसकी सरकारों के हैं गुलाम,
सूरज चाँद-तारें चलने से पहले
नदियाँ, झरने और
ये हवाएँ बादल बहने से पहले
इंसानों की ले इजाजत,
जब जब इंसानों ने
कुदरत को दी है चुनौती
तब-तब प्रकृति ने
इस गैरकानूनी
छेड़छाड़ के विरुद्ध
किया है प्रहार
इन नादियों ने
यही तो किया है
2013 और 2021
की शक्ल में
अपने दामन को साफ किया
बेलगाम सरकारों
इजिनियरों ठेकेदारों से
अपनी जमीन को वापस लिया
विकास के नाम पर
जिंदगी देने वाली
इन नदियों और पहाड़ों को
बांधा जा रहा है
जिन पहाड़ों पर लिपटकर
यह नदियां मैदानों में उतरती हैं
उन पहाड़ों पर अनगिनत
सुरंगे खोदी जा रही है,
लहूलुहान छलनी
पहाड़ों के सीने को किया जा रहा
इसी से तो पहाड़ों की
मौत हुई है
कुदरत का गुस्सा
इसी बात पर है।
लेकिन ये इंसानों की
नई औलादें समझती नहीं है।
बदलाव होता है
हर चीज में बदलाव होता है
जैसे दिन रात के आगोश में
समा जाता है और
रात सुबह को जगाती है
अंधेरा कहीं तकिए के नीचे
गुम हो जाता है।
लेकिन यह इंसानों की
नई औलादें सब कुछ
एक झटके में
बदल देना चाहते हैं
उन्हें पता नहीं वो
विकास के नाम पर
विनाश की इबादत
लिख रहे हैं।
वह विनाश जो होता है
अक्सर पहाड़ों की मौत के बाद।