शासन प्रशासन की बेरुखी के कारण पर्यटकों की नजर से ओझल खूबसूरत तालु झील : जानिए इस मनमोहक झील के बारे में
-कुलदीप राणा आजाद /केदारखण्ड एक्सप्रेस
रुद्रप्रयाग। पर्यटन और तीर्थाटन को बढ़ावा देकर उत्तराखंड में रोजगार की संभावनाओं का दम भरने वाली उत्तराखंड की भाजपा कांग्रेस की सरकारें 20 वर्षों में भी इस सोच को व्यवहार में नहीं उतार पाए हैं। अलबत्ता राज्य के सैकड़ों खूबसूरत स्थल झील तालाब झरने बुग्याल जैसे पर्यटक स्थल देश-विदेश के सैलानियों की नजरों से दूर हैं। यही कारण है कि प्रकृति की बेपनाह नेमतों के बावजूद पहाड़ का युवा रोजगार की तलाश में यहां से लगातार पलायन कर रहा है। पर्यटन और तीर्थाटन को लेकर सरकारों कि कोई नीति न बनने के कारण आज भी कहीं खूबसूरत स्थल अपने अस्तित्व को खोते जा रहे हैं। ऐसे ही एक खूबसूरत स्थल के बारे में हम बात कर रहे हैं जो सरकारों की घोर उदासीनता का दंश झेल रहा है।
मायाली-गुप्तकाशी मोटर मार्ग पर थाती-बड़मा के राजस्व ग्राम धरियांज में स्थित तालु झील शासन-प्रशासन और पर्यटक विभाग की घोर उदासीनता का दंश झेल रही है। प्रकृति की नेमतों से परिपूर्ण यह खूबसूरत झील देश-विदेश के पर्यटकों की नजरों से ओझल है। आपको बताते चले कि जखोली विकास खण्ड के मयाली गुप्तकाशी मोटरमार्ग पर थाती बड़मा के राजस्व ग्राम धरियांज गाँव में चारों तरफ़ से प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण बीच में खुबसूरत तालु झील यहाँ आने वाले हर किसी को आकर्षित कर लेती है। इस झील के पास शिवालाय और वरुण देवता के भव्य मंदिर इसकी सुन्दरता पर चार चाँद लगा देते हैं। लेकिन सरकारों की घोर उदासीनता के कारण यह झील पर्यटको की नजरों से आज भी दूर है। जबकि इसका संरक्षण में होने से अब इसके अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
किमदान्तीयों के अनुसार तालु झील लस्तर नदी का उद्गम स्थल है, इस झील के निचले भाग में आज भी नदी की धारा के अवशेष नजर आते हैं। पूर्व में इस झील के पानी से इसके नीचे 3 घराट (पानी से चलने वाली चक्की) चलती थी जिस पर क्षेत्र के 3 से अधिक गांव के लोग गेहूं, मडुवा आदि अनाज पिसवाते थे। जिससे तीन परिवारों का रोजगार इससे चलता था। जबकि थाती-बड़मा, मुन्नादेवल, धरियांज गाँव के ग्रामीणों की करीब 4 हजार नाली सिंचित भूमि की सिंचाई भी इसी झील के पानी से होती थी। लेकिन संरक्षण के अभाव में यह झील अपने अस्तित्व को खोती जा रही है और साल दर साल इसका पानी घटता जा रहा है।
यह झील पाताल पानी ( जमीन के अंदर से निकलने वाला पानी) है। स्थानीय लोग बताते हैं कि पहले इस झील में वर्ष भर पानी से लबालब भरी रहती थी लेकिन उसके बाद झील के संरक्षण के अभाव में यह साल में केवल 9 महीने ही इस में पानी भरा रहता है जबकि समय के साथ साथ इसमें पानी की और भी कमी होती जा रही है आज से करीब 30 साल पूर्व उत्तर प्रदेश सरकार में जरूर इसका जीर्णोद्धार हुआ था झील के चारों तरफ बाउंड्री वाल लगाई गई थी लेकिन उसके बाद पर्यटन को बढ़ावा देने और उससे रोजगार विकसित करने का दम भरने वाली उत्तराखंड सरकार की बेरुखी कादंस योर झील झेलती आ रही है।
बड़मा विकास संर्घष समिति के अध्यक्ष कालीचरण रावत, पर्यावरण प्रेमी व शिक्षक सतेन्द्र भण्डारी, मनवर रौथाण ,आशीष रौथाण, किशोर रौथाण, कै.सुफल रौथाण,नरवीर रौथाण, सत्ते सिहं रौथाण, महिला मंगल दल सदस्य थाती बड़मा कल्पेश्वरी देवी रावत, प्रधान थाती बड़मा ज्योति देवी रौथाण, बलबीर राणा आदि लोगों ने पर्यटन विभाग और उत्तराखंड सरकार से इस झील के संरक्षण की मांग की है साथ ही इसके व्यापक प्रचार प्रसार को लेकर ठोस कार्य योजना बनाने की बात की है ताकि यह खूबसूरत झील और रमणीय स्थल तक देश दुनिया के पर्यटकों और तीर्थ तीर्थाटनों की पहुंच आसान हो सके।
बड़मा विकास संर्घष समिति के अध्यक्ष कालीचरण रावत का कहना है कि अगर जिला प्रशासन रूद्रप्रयाग समय पर तालू झील के जल संरक्षण को लेकर समय पर ध्यान दे तो वर्तमान झील के गिरते जल स्तर को रोका जा सकता है और मयाली गुप्तकाशी वैकल्पितक यात्रा मार्ग पर तीर्थयात्रियों सहित पर्यटकों के लिए इस झील का दीदार करने का मौका मिलेगा ही साथ ही रोजगार के अवसर भी पैदा हो सकते हैं।