क्यूं उम्मीद लगा बैठे हो
दुनिया में हर कोई परेशान हुए बैठे हैं
दिमाग पर बेवजह जोर दिए बैठे हैं
जरा संभल जा, वक्त बचा है थोड़ा अभी भी
सभी अपने हीं मन के मालिक बने बैठे हैं
थोड़े दिनों का मेहमान है सभी इस जहां के
अपने घर को खुद अपने पास बना बैठे हैं
ये तेरा ये मेरा कब तक बैठे करते रहोगे
अपने हीं रूह को क्यों दागदार बना बैठे हैं
ढूंढो कभी अपने लिए भी, फुर्सत के दो पल
इस तरह क्यों तुम, बहारों से दूर हुए बैठे हैं
निकलो कभी घर से, खूबसूरत नजारे झांक लो
कि एक मुद्दत से, क्यूं तुम खामोश हुए बैठे हैं
जी लो हर वो पल, कुदरत ने जो तेरे लिए बख्शा है
कोई और जन्नत दिखाए, इस इंतजार में क्यों बैठे हैं.!!
अरुण चमोली
विवेकानन्द भवन, पटेल चैस्ट
नई दिल्ली