अधिकरियों के अभाव में रुद्रप्रयाग में लड़खड़ाती व्यवस्था, मौन जनप्रतिनिधि और कटघरे में सरकार
कुलदीप राणा आजाद/केदारखण्ड एक्सप्रेस
भले ही रूद्रप्रयाग जिला भौगोलिक दृष्टिकोण से छोटो हो मगर आर्थिक सामाजिक, धार्मिक तीर्थाटन और पर्यटन के रूप में जितना महत्वपूर्ण है उतना ही संवेदनशील प्राकृतिक आपदाओं को लेकर भी। जबकि रुद्रप्रयाग जिले को लेकिन जिस तरह से उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार द्वारा उपेक्षा की जा रही है वह बेहद चिंतनीय और विचारणीय है। इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है कि एक तरफ कोरोना महामारी का प्रकोप चरम है तो दूसरी तरफ ग्यावेंज्योतिर्लिंग बाबा केदारनाथ की यात्रा पर लगातार तीर्थ यात्रियों की संख्या बढ़ रही है लेकिन जिले की व्यवस्थाओं को संचालित करने वाला महत्वपूर्ण अधिकारी जिलाधिकारी का पद रिक्त चल रहा है। तहसीलों में उपजिलाधिकारी और तहसीलदार नहीं हैं तो सवाल उठाना भी लाजिमी है कि आखिर इस जिले को किसके भरोसे सरकार ने छोड़ा हुआ है। जिले की लड़खड़ाती व्यवस्थाओं पर जनप्रतिनिधियों की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है।
साल 1997 में पौड़ी टिहरी और चमोली जिले की सीमाओं के पुछले भागों को मिलाकर अस्तित्व में आया रूद्रप्रयाग जनपद को हमेशा सरकारों ने प्रशिक्षु जिलाधिकारियों और सेवानिवृत होने वाले मुख्य विकास अधिकारियों के भरोसे छोड़ा है। शुरूआत से ही जिलाधिकारियों की तैनाती बाद में और उनके तबादले की खबरें पहले सुर्खिंया बटोरने लगती। यही कारण है कि जिले में विकास का पहिया अपनी रफ्तार नहीं पकड़ पाया। वर्ष 2013 की आपदा के बाद जिलाधिकारी राघव लंगर पहली बार तीन साल का कार्यकाल पूरा कर पाये जिनके कार्यकाल में केदारनाथ की आपदा में विध्वंस का दंश से उभरने में जिले को एक नई गति मिली, लेकिन उनके तबादले के बाद आई जिलाधिकारी रंजना वर्मा को भी छ माह में ही हटा दिया गया। इसके बाद आए जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल के रूप में मिले ऊर्जावान अधिकारी यहां तीन वर्षों तक रहे जिससे जनता को उम्मीद जगी थी कि टिकाऊ जिलाधिकारियों से जिले में विकास कार्य भी तेजी से हो रहे हैं। लेकिन जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल के तबादले के बाद आई आई ए एस अधिकारी वंदना सिंह को सरकार ने एकाएक पांच माह के अन्तराल में ही हटाकर जिले को अधिकारी विहीन कर दिया। आज स्थिति यह है कि जिले में केवल एक उपजिलाधिकारी तैनात हंै, जबकि तीनों तहसीलों में तहसीलदार के पद रिक्त चल रहे हैं।
वर्तमान में जिले में आॅलवेदर परियोजना का कार्य गतिमान है। आॅलवेदर सड़क निर्माण में जिन लोगों के मकाने, खेत खलियान के साथ ही अन्य परिसंपतियां काटी गई हैं उनका मुआवजे को लेकर कई विसंगतियां खड़ी हो रखी हैं लेकिन उनकी समस्याओं को सुनने वाला कोई नहीं हैं। यही है रेलवे परियोजना के तहत भी हो रखा है। इस वर्ष कोविड-19 के कारण देर से आरम्भ हुई केदारनाथ यात्रा अब अंतिम दिनों में जिस कारण तीर्थ यात्रियों की संख्या में लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है लेकिन यात्रा व्यवस्थायें भी बाबा के भरोसे चल रही हैं। केदारनाथ में पुर्ननिर्माण के कार्य चर रहे हैं लेकिन किस हाल में भगवान जानें। कोविड़-19 को संक्रमण थमने का नाम नहीं ले रहा है, तहसीलों में लोगों के विभिन्न कागजात बनने हैं लेकिन जिले में अधिकारियों के अभाव में चारों तरफ व्यवस्थायें लड़खड़ा रही हैं। सवाल यह हे कि आखिर सरकार ने इस जिले को किसके भरोसे छोड़ा हुआ है? महत्वपूर्ण पदो पर अधिकारियों की रिक्तता से जनता को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है जबकि विकास कार्य ठप्प पड़े हैं। लेकिन न जनप्रतिनिधि इसके लिए आवाज उठा रहे हैं और न आम जनमानस।