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आखिर कारण क्या था?
पिरूल से कोयला नही बन पाया,
आखिर कारण क्या था?
जैट्रोफा से डीजल नही बन पाया,
आखिर कारण क्या था?
न मत्स्य पालन कुछ कर पाया,
न चाय बागान दिखे कहीं।
न रिंगाल कुछ कर पाया ,
न जड़ी बूटी उगी कहीं।।
धारा मंगरो का शीतल जल,
गंगा का पानी कहाँ गया।
बन्द बोतलों में भरकर पानी,
कैसे उदगमतक आ गया।।
नीति नहीं, नियोजन नहीँ ,
इच्छा शक्ति की कमी रही।
परियोजना बनती रहीं पर ,
धरी की धरी रह गयी।।
प्रेम का पिरमू ,धर्म का धरमू,
हम हर्ष का हरषु रह गए।
स्वरोजगार अपनाएं ,
नियंता , नसीहत देकर चले गए।।
आज वक़्त आ गया है ,
कुछ सोचने और समझने का।
सत है, सतयुग से यहाँ ,
इस सत्य को समझने का।।
कुछ सरकारें सोचें कुछ हम सोचें,
नए युग की शुरूआत करें।
हर साधन का सद्पयोग हो
हर साधना का प्रयोग करें।।
पिरूल से कोयला , चीड़ से लीसा
फिर से आज बनाना होगा।
जेट्रोपा का हर्बल डीजल बनाकर
आज दिखाना होगा।।
अन्न धन से आत्म निर्भर थे
52 राजवंश यहाँ चलते थे।
संस्कृति साहित्य में भी समृद्ध थे
स्वाभिमान जीते से थे।।
यही स्वाभिमान आज हमें
फिर से लौटाना होगा।
देव भूमि और वीर भूमि को
कर्म भूमि बनाना होगा।।
@स्वरचित : महेंद्र सिंह बर्त्वाल
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
Date-21-5-2020, रुद्रप्रयाग।।।।