हर परिस्थिति में अनुकूल , रहो ये बबूल सिखाते ।
पूछ रूप की दो दिन का,,गुण उत्तम हमें बताते ।
काँटे चुभो दे जब दामन ,,दर्द फुर्र से उड़ जाते ।
अपने जो देते हैं दंश,,मुश्किल से ही सह पाते ।
कलेजे टुकड़े जब हो,मनु देखो वृक्ष बबूल को ।
छाया नेह की लुटाता,,बबूल, मरू में पथिक को ।
कंटकों के बीच बबूल,,,हर वक्त वो मुस्कुराते ।
हर परिस्थिति....
लोग कहे बबूल वृक्षों पर, भूत हमेशा ही रहते ।
कुछ कहे देव स्वरूप वृक्ष, श्री विष्णु निवास करते ।
खुद में मस्त बिन परवाह,, रेगिस्तान में झूमता ।
करे स्वागत ऋतु का वो ,पीत पुष्प फल से लदता ।
फूल फल छाल डाल सभी,,औषधी में काम आते ।
पूछ रूप की दो .....
सुख -दुख आँख मिचौली है,हार न मान विसंगति से ।
जमीं कैसी भी हो नीर,,, बिन जी ले बबूल जैसे ।
दुष्ट घाव दे हिय तो,,शूल बन रक्षा कर अपना ।
क्रोध पर विजय मिले यही,, सार तत्व मन में रखना ।
शांति में सुख है कीकर, जीवन की कला सिखाते ।
हर परिस्थिति......
उपहास उड़ाते जो भी ,,स्वार्थ में आगे सबसे
मतलब से लोग रखें अब,, केवल रिश्ते वो सबसे
बबूल बोने वाले का ,, जो लोग खिल्ली उड़ाते ।
आखों की पट्टी खुलती, औषधि उसमें ही पाते ।
अंग अंग दे सबको वो,,,परमार्थ में मिट जाते ।
हर परिस्थिति में अनुकूल,रहो ये बबूल सिखाते ।
पूछ रूप की दो दिन का,, गुण उत्तम हमें बताते ।।
@उषा झा, देहरादून उत्तराखंड
सर्वाधिकार सुरक्षित
पूछ रूप की दो दिन का,,गुण उत्तम हमें बताते ।
काँटे चुभो दे जब दामन ,,दर्द फुर्र से उड़ जाते ।
अपने जो देते हैं दंश,,मुश्किल से ही सह पाते ।
कलेजे टुकड़े जब हो,मनु देखो वृक्ष बबूल को ।
छाया नेह की लुटाता,,बबूल, मरू में पथिक को ।
कंटकों के बीच बबूल,,,हर वक्त वो मुस्कुराते ।
हर परिस्थिति....
लोग कहे बबूल वृक्षों पर, भूत हमेशा ही रहते ।
कुछ कहे देव स्वरूप वृक्ष, श्री विष्णु निवास करते ।
खुद में मस्त बिन परवाह,, रेगिस्तान में झूमता ।
करे स्वागत ऋतु का वो ,पीत पुष्प फल से लदता ।
फूल फल छाल डाल सभी,,औषधी में काम आते ।
पूछ रूप की दो .....
सुख -दुख आँख मिचौली है,हार न मान विसंगति से ।
जमीं कैसी भी हो नीर,,, बिन जी ले बबूल जैसे ।
दुष्ट घाव दे हिय तो,,शूल बन रक्षा कर अपना ।
क्रोध पर विजय मिले यही,, सार तत्व मन में रखना ।
शांति में सुख है कीकर, जीवन की कला सिखाते ।
हर परिस्थिति......
उपहास उड़ाते जो भी ,,स्वार्थ में आगे सबसे
मतलब से लोग रखें अब,, केवल रिश्ते वो सबसे
बबूल बोने वाले का ,, जो लोग खिल्ली उड़ाते ।
आखों की पट्टी खुलती, औषधि उसमें ही पाते ।
अंग अंग दे सबको वो,,,परमार्थ में मिट जाते ।
हर परिस्थिति में अनुकूल,रहो ये बबूल सिखाते ।
पूछ रूप की दो दिन का,, गुण उत्तम हमें बताते ।।
@उषा झा, देहरादून उत्तराखंड
सर्वाधिकार सुरक्षित