इस बार पोखरी मेला रहा फिका, सरकारी विभागों की उदासीनता भी रही हावी
-नीरज कण्डारी/केदारखण्ड एक्सप्रेस
पोखरी। हिमवंत कवि चन्द्रकुँवर बत्र्वाल पर्यटन शरदोत्सव मेला पोखरी की रौनक इस बार पिछले वर्षो के मुकाबले फिकी नजर आई। वहीं मेले में सरकारी विभागों की उदासीनता भी हावी रही। स्थिति यह रही कि मेले के समापन अवसर पर पूरा पंडाल में मुठ्ठी भर लोग ही मौजूद थे, अधिकतर कुर्सियां पूरी तरह से खाली नजर आई।
दरअसल हर वर्ष की तरह इस वर्ष पोखरी में सात दिवसीय मेले का आयोजन नगर पंचायत द्वारा किया गया। मेले में लोगों से जुड़े प्रमुख विभागों की प्रदर्शनी लगाई जानी थी, ताकि सरकारी जनकलयाणकारी योजनाओं को आम जनता तक पहुँचाया जा सकें और लोग इन योजनाओं का लाभ ले पायें। लेकिन विभागों की घोर लापरवाहियों का आलम यह था कि कई विभागों ने तो प्रदर्शनियां लगाई ही नहीं और जिन विभागों की प्रदर्शनी लगी हुई थी उन्होंने केवल स्टाॅलों पर बैनर टांकने तक ही अपने कर्तव्र्यों की इतिश्री कर दी गई। न इन प्रदर्शनियों में सरकारी कोई योजनओं की जानकारी थी और न ही विभाग का कोई अधिकारी कर्मचारी। ऐसे में साफ तौर पर समझा जा सकता है कि कैसे सरकार की योजनाओं का लाभ आम नागरिकों तक पहुँचे?
उधर मेले में प्रदेश के किसी मंत्री के न पहुँचने से भी लोागों की उम्मीदें धुमिल नजर आई। पोखरी विकास खण्ड चमोली जिले के सबसे बड़े विकासखण्डों में शामिल है लेकिन दुर्भाग्यवश प्रशासनिक और राजनीतिक उदासीनता की मार यह ब्लाॅक झेलता आ रहा है। हालांकि मेले के जरिए स्थानीय प्रतिभाओं को उभरने का एक मंच जरूर मिलता है, मगर क्षेत्र की विकास के मुद्दे गौण नजर आते हैं। इसका एक जीता जागता उदाहरण हापला घाटी की लाईफ लाइन पोखरी हापला गोपेश्वर मोटर मार्ग के चार माह से बंद पड़े से लगाया जा सकता है।
निश्चित तौर पर मेले हमारी धार्मिक सांस्कृति धरोहरों को जीवंत रखने में अहम भूमिका निभाते हैं लेकिन इन्हीं मेले के जरिए सरकार प्रशासन और जिम्मेदार अधिकारियों का ध्यान क्षेत्र की समस्याओं की ओर भी रूबरू होता है, लेकिन जब नेता, मंत्री और अधिकारी इन मेलों से दूरी बनाने लगेंगे तो भला कैसे क्षेत्र का विकास होगा यह बड़ा सवाल है।