जुल्म की इम्हिान पर भारी
-कुलदीप राणा ‘‘आजाद’’
आज फिर धरती के
दरक जाने का अंदेशा है
आसमान के फट जाने
और सृष्टि में प्रलय
आने का अंदेशा है।
ये जो तनी हुई मुठ्यिां हैं
नारी के देह से
खौलती ज्वाला के
बह जाने का अंदेशा है।।
जुल्म की इम्हिान पर भारी
नारी के धैर्य का
टूट जाने का अंदेशा है।
इस मुल्क के आवाम की
मृत आत्माओं से
बेड़ियाँ जकड़े न्याय और
सूली चढ़े इनसाफ से
बेटियों को पढ़ाने
और आगे बढ़ाने के फरेब से
रिहाई पाने का अंदेशा है।
तुम्हारे कानून, धाराओं
और दफाओं की अंधेरी गलियों में
रौंधी-कुचली जा रही बेटियाँ
और खुले में घुमते रावण भेड़ियों से
मुक्ति पाने का अंदेशा है।
जुल्म की इम्हिान पर भारी
आज नारी के धैर्य का
टूट जाने का अंदेशा है।
जली हुई देह पर
खौलती हुए ये आवाज
रौंधे गए जिस्म पर
आक्रोश का ये गुब्बार
घुटती, सिसकती,
बेटियों के आँसुओं का
अंगार बनने का अंदेशा है।
समाज और सियासत की
नैतिकता को सरे आम
उधेड़ने के खेल में
राजनीति के रहनुमाओं
तुम क्यों फेल हो
नारियों के सम्मान को
बचाने में।।
आज सड़क से संसद तक
जवाब लेने का अंदेशा है।
जुल्म की इम्हिान पर भारी
आज नारी के धैर्य का
टूट जाने का अंदेशा है।
प्रिया रेड्डी का श्रद्धासुमन अर्पित।।