गाडी का हार्न तो दूर, इस गांव में मोबाइल की घंटी तक नहीं बजती
चमोली। सरकारें क्या कुछ कहती हैं, और लोगों को क्या कुछ मिलता है ये सब बातें पोखरी विकासखण्ड में बहुत कन्फ्यूज करती हैं। क्योंकि जिन योजनाओं-दांवों और वादों के बूते सरकार में बैठे नेता मंत्री अपनी पीठ खूब थपथपाते हैं, वास्तव में धरातल पर जनता को ऐसा कुछ मिलता ही नहीं है। विकासखण्ड पोखरी का मालकोटी गांव भी सरकारों की ऐसी ही काल्पनिक विकास का शिकार हुआ है। सरकारों की बेरुखी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां मोटर मार्ग तो दूर मोबाइल की घंटी तक नहीं बजती है।
जरा सोचिए 21वीं सदी के इस हाइटेक युग में जहां पैदा होते इंटरनेट कम्प्यूटर जैसे उपकरणों से बच्चों का खेलना आम हो चला है वहीं पोखरी का मालकोटी गांव में मोबाइल फोन के सिग्नल तक नहीं रहते हैं। पोखरी-उडामांडा-रौता मोटर मार्ग पर रौता से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित मालकोटी गांव आजादी के 70 सालों से मूलभूत सुविधाओं का दंश झेल रहा है। गाँव तक मोटर मार्ग न पहुंचने से बीमारों और गर्भवती महिलाओं को सबसे अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। डंडी के सहारे पांच की पैदल दूरी तय करके रौता सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया जाता है लेकिन यहां भी केवल फार्मेसीस्ट के ही भरोसे यह स्वास्थ केन्द्र चल रहा है। जबकि कई बार गम्भीर रोगी रास्ते में दम तोड़ देते हैं। ग्रामीण कई वर्षों से शासन प्रशासन से लेकर क्षेत्रीय जन प्रतिनिधियों और अधिकारियों को पत्र दिए जा चुके हैं, लेकिन बेबस लाचार ग्रामीणों की कोई सुध लेने को तैयार नहीं है। कनकचौंरी मोटरमार्ग के मध्य से 5 किलोमीटर पैदल चलकर इस गांव में पहुंचा जाता है लेकिन यह रास्ता घौर जंगल और बीहड चटानों से होकर गुजरता है जिससे पैदल सफर करने में स्कूली छात्रों और ग्रामीणों को जानजोखिम में डालकर इस रास्ते से सफर तय करना पड़ता है।
25 जून 2015 को जब बादल फटा था उस समय पूरे गांव की गौशालाएं भी आपदा की चपेट में आ गई थी लेकिन कई परिवारों को क्षतिपूर्ति नही मिल पाया है। मालकोटी गांव में कभी 40 परिवार निवास करते थे, किन्तु स्वास्थ्य, शिक्षा सड़क और दूरसंचार जैसी मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे इस गाँव से लोग लगातार पलायन कर रहे हैं। वर्तमान में इस गांव में मात्र 18 परिवार ही रह चुके हैं।
एक तरफ सरकार रिमाइग्रेशन के लिए लगातार अनेक योजनाओं का ढिंढोरा पीट रही है वहीं पहाड़ के मालकोटी जैसे सैकड़ों गांव आज भी आधारभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है। ऐसे में जरूर है इन गांवों को मुख्यधारा में जोडने की।
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